A mythological story is associated with the creation of Bhrigusamhita, whose story is mentioned in the Puranas in this way. Once a dispute started among the deities that Brahma, Vishnu and Devadhidev Mahadev are the best among these three. Taking this decision was also not an easy task. Eventually Indra and all the deities went to Maharishi Bhrigu. But Maharishi Bhrigu also had a problem. He said- “There is no proper opinion on this subject. Therefore, O gods! I myself will meditate on this subject and then if I come to any conclusion, I will introduce to you the superiority of any one of them.” Maharishi Bhrigu easily angered the Supreme Father Brahma and Lord Shiva. Then he went to take the examination of Lord Shri Hari Vishnu. He reached there and saw that he was drowsy on Sheshnag and Mata Lakshmi was pressing his feet.
After standing for some time, Bhrigu ji, while sleeping, threw a kick tightly on the chest of Lord Vishnu. Lord Vishnu’s eyes opened and he got up in a panic. Then without getting angry said – “O Maharishi Bhrigu! My chest is hard like a thunderbolt. There was no injury in your leg somewhere.” On this Bhrigu said – “O Lord Shri Hari Vishnu! You are the best in the Trimurti.” Lord Shri Hari Vishnu laughed at the foot strike of Bhrigu, but could not bear this humiliation of his husband from Mother Lakshmi. Enraged, Mother Lakshmi cursed Bhrigu – “O Brahmin! In future all brahmins will be deprived of prosperity, you yourself too.” Maharishi Bhrigu had completed his book “Jyotish Samhita” by that time. The results of the calculations in them were fixed for thousands of years to come. Maharishi Bhrigu said to Mother Lakshmi- “Wherever my hand is in the house, there will be rain of Lakshmi and stable Lakshmi will reside there.” On this statement of Maharishi Bhrigu, Mother Lakshmi became even more furious and said- “So listen! The astrology book on which you are so proud, its fruit will never come true and complete. Don’t be sad and angry, I give you divine vision. You write a Samhita book again, I have a boon that its fruit will never be fruitless. It is believed that the Bhrigu Samhita was created as a result of the boon of Shri Hari Vishnu.
भृगुसंहिता की रचना का पौराणिक आख्यान
भृगुसंहिता की रचना से एक पौराणिक आख्यान जुड़ा हुआ है जिसकी कथा पुराणों में कुछ इस प्रकार से उल्लिखित है। देवताओं में एक बार विवाद शुरू हुआ कि ब्रह्मा, विष्णु और देवाधिदेव महादेव इन तीनों में कौन श्रेष्ठ हैं। इस बात का फैसला करना भी कोई सहज काम नहीं था। अंततः इन्द्रादि सभी देवतागण महर्षि भृगु के पास गए। परंतु महर्षि भृगु के सामने भी एक समस्या थी। उन्होंने कहा- ”इस विषय पर किसी भी प्रकार का मत उचित नहीं है। अतः हे देवगण ! मैं स्वयं इस विषय पर मनन करके देखूंगा और तब यदि किसी निष्कर्ष पर पहुंचा तो मैं आपको इनमें से किसी भी एक की श्रेष्ठता का परिचय दूंगा।“ महर्षि भृगु ने परमपिता ब्रह्मा और भगवान शिव को आसानी से क्रोध दिला दिया। फिर वह भगवान श्री हरि विष्णु की परीक्षा लेनेे गए। उन्होंने वहां पहुंचकर देखा कि वह शेषनाग पर निद्रामग्न थे और माता लक्ष्मी उनके पांव दबा रही थीं।
कुछ देर खड़े रहने के बाद भृगु जी ने सोते हुए भगवान विष्णु के सीने पर कस कर एक लात मारी। भगवान विष्णु की आंख खुली और वह हड़बड़ा कर उठ बैठे। फिर बिना क्रुद्ध हुए बोले- ”हे महर्षि भृगु! मेरी छाती तो वज्र की भांति कठोर है। कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आई।“ इस पर भृगु ने कहा- ”हे भगवान श्री हरि विष्णु! त्रिमूर्ति में आप सर्वश्रेष्ठ हैं।“ भृगु के पाद प्रहार को भगवान श्री हरि विष्णु तो हंसते हुए झेल गए परन्तु माता लक्ष्मी जी से अपने पति का यह अपमान सहन न हुआ। क्षुब्ध होकर माता लक्ष्मी ने भृगु को शाप दिया- ”ऐ ब्राह्मण! भविष्य में सभी ब्राह्मण समृद्धि से वंचित ही रहेंगे, स्वयं तुम भी।“ महर्षि भृगु उस समय तक अपना ग्रंथ ”ज्योतिष संहिता“ पूर्ण कर चुके थे। उनमें जो गणनाएं थीं उनका फल आने वाले हजारों वर्षों तक के लिए निश्चित किया जा चुका था। महर्षि भृगु ने माता लक्ष्मी से कहा- ”मेरा हाथ जिस घर पर भी होगा, वहां लक्ष्मी की वर्षा होगी और स्थिर लक्ष्मी का वास होगा।“ महर्षि भृगु के इस कथन पर माता लक्ष्मी और भी क्रुद्ध हो गईं और बोलीं- ”तो सुनो! जिस ज्योतिष संहिता ग्रंथ पर तुम्हें इतना अभिमान है, उसका फल कभी सही और पूर्ण नहीं आएगा।“ इस पर क्षुब्ध व क्रुद्ध होकर महर्षि भृगु माता लक्ष्मी को शाप देने ही वाले थे कि भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा- ”हे महर्षि! आप दुखी और क्रोधित न हों, मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं। आप पुनः एक संहिता ग्रंथ लिखें, मेरा वरदान है कि उसका फल कभी निष्फल नहीं होगा। माना जाता है कि श्री हरि विष्णु के वरदान के फलस्वरूप भृगु संहिता की रचना हुई।